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सोमवार, 30 मई 2022

संप्रेषण के प्रमुख मॉडल








संप्रेषण पर अधिकतर पश्चिमी विचारकों ने ही अपना मत रखा है, भारतीय चिंतन परम्परा में इसका अभाव दिखाई देता है। पश्चिमी विद्वानों के प्रमुख संप्रेषण मॉडल निम्नलिखित है-

1. अरस्तू का संप्रेषण मॉडल, 

2. मर्फी का संप्रेषण मॉडल,

3. लॉसवेल का संप्रेषण मॉडल, 

4. शैनन और वीवर का संप्रेषण मॉडल,

5. शैरम का संप्रेषण मॉडल, 

6. बर्लो का संप्रेषण मॉडल,

7.हेलिकल का संप्रेषण मॉडल, 

8. थिल एवं बोवी का संप्रेषण मॉडल, 

9. लेसिकर, पेटाइट एवं फ्लैटले मॉडल

   

संप्रेषण के प्रमुख मॉडल


1. अरस्तू का संप्रेषण मॉडल (Aristotle Model of Communication)

अरस्तू संप्रेषण मॉडल पर विचार करने वाले पहले व्यक्ति थे। अरस्तू संप्रेषण के लिए 3 तत्वों को महत्वपूर्ण मानते हैं- प्रेषक, संदेश और प्राप्तकर्ता (प्रापक)। लेकिन अरस्तू अपने मॉडल में प्रेषक को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं।








अरस्तू के मॉडल के अनुसार, प्रेषक (स्पीकर) संप्रेषण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह संप्रेषण का पूरा प्रभार अपने कंधों पर लेता है। प्रेषक पहले एक ऐसी सामग्री तैयार करता है, जिससे वह अपने विचारों से श्रोताओं या प्राप्तकर्ताओं को प्रभावित करने में सफल हो। इसलिए वह अपने भाषण में हर उन मुद्दों को उठाता है जो जनता को प्रभावित कर सकें, या जो वे सुनना चाहते हैं।अरस्तू का कहना है कि प्रेषक इस तरह से संवाद करता है कि सुनने वाले (प्रापक) प्रभावित होते हैं और उसी के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं। इस मॉडल के अनुसार वक्ता को संप्रेषण में अपने शब्दों और सामग्री के चयन के बारे में बहुत सावधान रहना चाहिए। उसे अपने लक्षित दर्शकों को समझना चाहिए और फिर अपना भाषण तैयार करना चाहिए।







संप्रेषण का अरस्तू मॉडल व्यापक रूप से स्वीकृत और संप्रेषण का सबसे सामान्य मॉडल है जहाँ प्रेषक उन्हें प्रभावित करने और उन्हें जवाब देने और उनके अनुसार कार्य करने के लिए रिसीवर को सूचना या संदेश भेजता है। संप्रेषण का अरस्तू मॉडल सार्वजनिक स्थलों, सेमिनार तथा व्याख्यान आदि में उत्कृष्टता प्राप्त करने का उपयुक्त मॉडल है, जहाँ प्रेषक एक प्रभावशाली सामग्री को डिजाइन करके अपनी बात स्पष्ट करता है, संदेश को सामने वालों को संप्रेषित करता है और वे उसी के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है की यहाँ प्रेषक सक्रिय सदस्य है और रिसीवर निष्क्रिय है।



2. मर्फी का संप्रेषण मॉडल (Murphy Model of Communication)


इस मॉडल के प्रतिपादक एच. ए. मर्फी, एच. डब्ल्यू. हिल्डब्रेन्ड तथा जे. पी. थॉमस हैं, जिसे इन्होंने संयुक्त रूप से 1947 ई. में प्रतिपादित किया। इस मॉडल के अनुसार संप्रेषण प्रक्रिया के छः मुख्य तत्त्व होते हैं-


संदर्भ


संदेशवाहक


संदेश


माध्यम


प्राप्तकर्त्ता


प्रतिक्रिया या प्रतिपुष्टि

इस मॉडल में प्रेषक एक संदेश चुनता है तथा उसे संप्रेषित करता है। प्रेषक संदेश को भेजने के लिए किसी उचित माध्यम का चुनाव करता है, जिसके द्वारा प्राप्त होने वाले संदेश पर प्राप्तकर्ता अपनी प्रतिपुष्टि (फीडबैक) देकर संप्रेषण को पूरा करता है।










लॉसवेल ने सन् 1948 ई. में संप्रेषण का मॉडल प्रस्तुत किया, जिसे दुनिया का पहला व्यवस्थित मॉडल कहा जाता है। इस मॉडल के अनुसार प्रेषक उचित माध्यम का प्रयोग करके प्राप्तकर्ता को अपने विचारों से प्रभावित कर सकता है। अरस्तू ने जहाँ प्रेषक को महत्वपर्ण माना था वहीं लॉसवेल ने माध्यम को ज्यादा महत्व दिया। इनका मॉडल प्रश्न के रूप में था। लॉसवेल के अनुसार- संप्रेषण की किसी प्रक्रिया को समझने के लिए सबसे बेहतर तरीका निम्न पांच प्रश्नों के उत्तर का तलाश करना है-


1. कौन? (प्रेषक) 🤔


2. क्या कहा? (संदेश)🗨️


3. किस माध्यम से? (संप्रेषण माध्यम)📺


4. किसके लिए? (श्रोता)👂


5. किस प्रभाव के साथ? (प्रभाव)➡️


लॉसवेल का मॉडल एक रेखीय संचार प्रक्रिया पर आधारित है, जिसके कारण सीधी रेखा में कार्य करता है। इसमें फीडबैक को स्पष्ट रूप से नहीं दर्शाया गया है, दरअसल लॉसवेल ने प्रभाव के अंतर्गत ही फीडबैक को सम्मलित कर लिया है। संप्रेषण की परिस्थिति का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है। संचार को जिन पांच भागों में विभाजित किया गया है, वे सभी आपस में अंत:संबंधित हैं। संचार के दौरान उत्पन्न होने वाले व्यवधान को नजर अंदाज किया गया है।




4. शैनन और वीवर का संप्रेषण मॉडल (Shannon and Weaver Model of Communication)








शैनन और वीवर मॉडल, संप्रेषण का सबसे लोकप्रिय मॉडल है और दुनिया भर में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। इस मॉडल को सी. ई. शैनन एवं डब्ल्यू. वीवर ने 1949. में प्रस्तुत किया था। शैनन और वीवर मॉडल के अनुसार संदेश वास्तव में उस व्यक्ति से उत्पन्न होता है जिसके पास विचार होता है या जिसके पास जानकारी होती है। यह मॉडल मुख्यतः रेडियो और टेलीफ़ोन के तकनीकी संप्रेषण से संबंधित है। इनके अनुसार संप्रेषण प्रक्रिया में पाँच तत्त्व निहित हैं जो सूचना स्रोत से प्रारम्भ होकर प्रेषक द्वारा कोलाहल स्रोत को पार करते हुए संदेश के रूप में उनके लक्ष्य तक प्राप्तकर्त्ता के पास संप्रेषित होते हैं।


*सूचना स्रोत (विचार / संदेश)

↓👇


*ट्रांसमीटर (मुंह से मस्तिष्क / शोर और ध्यान भंग-बाहरी बाधाओं के साथ)

↓👇


*संकेत

↓👇


*प्राप्तकर्ता (संकेतों की प्राप्ति)

↓👇

*लक्ष्य (अंत में संदेश मिलता है)



शैमन तथा वीवर मॉडल के अनुसार संप्रेषण में प्रेषक की अहम भूमिका होती है जो सूचना स्रोत से विचारों को एकत्रित करके संप्रेषण के माध्यम से संदेश को उनके प्राप्तकर्त्ता तक पहुँचाता है। यह प्रेषक संदेश को संदेश बद्ध करके भेजता है।इस मॉडल में कोलाहल या वाह्य शोर को भी महत्व दिया गया है। इनका मत था कि संप्रेषण प्रक्रिया में जिस माध्यम से संदेश प्रेषित होते हैं उसमें शोरगुल का पाया जाना स्वाभाविक है जिसकी वजह से संदेश में अशुद्धि भी मिली होती है। इसीलिए यह मॉडल संदेश को सांकेतिक भाषा में परिवर्तन पर जोर देता है ताकि इन अशुद्धियों को निकाल कर शुद्ध संदेश को संप्रेषित किया जा सके।



5. शैरम का संप्रेषण मॉडल (Schramm’s Model of Communication)


शैनन और वीवर मॉडल को जानने के बाद अब हम शैरम के संप्रेषण के मॉडल पर आते हैं, क्योंकि इसकी जड़ें शैनन और वीवर मॉडल से ही जुडी हैं, उसी को आधार बनाकर शैरम ने नया मॉडल प्रस्तुत किया। दरअसल इन्होंने संप्रेषण के तीन मॉडल पेश किया जिनमें पहला प्रारूप शैनन और वीवर मॉडल का अनुकरण मात्र था। विल्बर शैरम ने संप्रेषण के इस मॉडल को 1954 में प्रस्तुत किया। अंतर यह था की इन्होंने शैनन और वीवर मॉडल के शोर संबंधी अवधारणा को नकार दिया, इनके अनुसार शोर जैसे अशुद्धियाँ संप्रेषण में होती ही नहीं, न ही संदेश कभी अशुद्ध होता है।










इनका दूसरा मॉडल संप्रेषण के माध्यम और प्रेषित करने के तरीके से संबंधित है। दरअसल सूचना का तब तक कोई फायदा नहीं है जब तक कि उसे सावधानीपूर्वक शब्दों में न लिखा जाए और दूसरों तक उचित माध्यम से न पहुँचाया जाए। इस प्रक्रिया में एन्कोडिंग एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह विचार को सामग्री में परिवर्तित करके संप्रेषण की प्रक्रिया शुरू करता है। जब सूचना प्राप्तकर्ता तक पहुँच जाती है तो उसकी प्रमुख जिम्मेदारी यह समझने की होती है कि स्पीकर क्या संदेश देना चाहता है। जब तक प्राप्तकर्ता जानकारी को समझने या डिकोड करने में सक्षम नहीं होगा, तब तक प्रेषक क्या संप्रेषित करना चाहता है, संदेश वास्तव में किसी काम का नहीं है। इस प्रकार एन्कोडिंग और डिकोडिंग एक प्रभावी संप्रेषण के दो सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं जिनके बिना कोई जानकारी कभी भी दो व्यक्तियों के बीच प्रवाहित नहीं हो सकती है। शैरम के मॉडल के अनुसार, कोडिंग और डिकोडिंग एक प्रभावी संप्रेषण की दो आवश्यक प्रक्रियाएं हैं जिसे उचित मध्यम द्वारा संप्रेषित किया जाना चाहिए।




तीसरे मॉडल में वह जोर देता है कि संप्रेषण तब तक अधूरा है जब तक कि प्रेषक प्राप्तकर्ता से प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं करता है। कोई भी संप्रेषण जहाँ प्रेषक को प्रतिक्रिया नहीं मिलती है, वह संप्रेषण पूर्ण नहीं है और इस प्रकार वह अप्रभावी है। इन्होंने प्राप्तकर्ता और उसके द्वारा दिया गया फीडबैक दोनों को महत्व दिया है।




शैरम का मत ​​था कि किसी व्यक्ति का ज्ञान, अनुभव और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भी संप्रेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विभिन्न संस्कृतियों, धर्म या पृष्ठभूमि के व्यक्ति अलग-अलग तरीकों से संदेश की व्याख्या करते हैं, जिसे संप्रेषण में इग्नोर नहीं किया जा सकता। गलत बॉडी मूवमेंट, हावभाव, चेहरे के भाव और कई अन्य कारकों के कारण कोई भी संदेश विकृत हो सकता है।




6. बर्लो का संप्रेषण मॉडल (Berlo’s Model of Communication)


संप्रेषण का अरस्तू मॉडल स्पीकर को केंद्रीय स्थिति में रखता है और सुझाव देता है कि स्पीकर वह है जो संपूर्ण संप्रेषण को चलाता है, वहीं संप्रेषण का बेर्लो मॉडल बोध क्षमता को महत्व देता है। यहाँ बोधक्षमता का तात्पर्य आँख, नाक, कान, आदि इंद्रियों से प्राप्त ज्ञान से है। इस मॉडल के अनुसार प्रेषक संदेश को अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर सांकेतिक भाषा में परिवर्तित करता है उसके बाद किसी भी माध्यम से उसे श्रोता को भेज देता है। उसके बाद प्राप्तकर्ता अपने ज्ञान, विवेक और संस्कृति के अनुसार संदेश को ग्रहण करता है।









बर्लो का संप्रेषण मॉडल, SMCR मॉडल पर काम करता है। SMCR मॉडल में-


1. S– स्रोत (S– Source)


*संप्रेषण कौशल


1. S– स्रोत (S– Source)


*संप्रेषण कौशल (Communication Skills)


*मनोवृत्ति (Attitude)


*ज्ञान (Knowledge)


*सामाजिक व्यवस्था (Social System)


*संस्कृति (Culture)


2. M- संदेश (M– Message)


*सामग्री (Content)

*तत्त्व (Element)


*इलाज (Treatment)


*संरचना (Structure)


*कोड (Code)


3. C- चैनल (C – Channel)


4. R- रिसीवर (R – Receiver)


बेरलो के संप्रेषण के मॉडल में कई खामियाँ हैं। संप्रेषण के बर्लो मॉडल के अनुसार, संप्रेषण के लिए स्पीकर और श्रोता को एक सामान्य स्तर (धरातल) पर होना चाहिए जो कभी-कभी वास्तविक परिदृश्य में व्यावहारिक नहीं होता है। इसके अलावा माध्यम, साधन, फीडबैक आदि को भी इस मॉडल में महत्व नहीं दिया गया है।


7. हेलिकल का संप्रेषण मॉडल (Helical Model of Communication)


संप्रेषण का एक और बहुत महत्वपूर्ण मॉडल संप्रेषण का हेलिकल मॉडल है। 1967 में फ्रैंक डांस द्वारा संप्रेषण प्रक्रिया पर कुछ और प्रकाश डालने के लिए हेलिकल मॉडल ऑफ़ कम्युनिकेशन प्रस्तावित किया गया था। फ्रैंक डांस ने हेलिक्स (helix) के समान संप्रेषण प्रक्रिया के बारे में विचार किया।











संप्रेषण के हेलिकल मॉडल के अनुसार, संप्रेषण की प्रक्रिया किसी व्यक्ति के जन्म से ही विकसित होती है और अंतिम समय तक जारी रहती है। सभी जीवित जीव-जंतु अपने जन्म के पहले दिन से संप्रेषण करना शुरू कर देते हैं। जब बीज बोये जाते हैं, तो वे किसान को संदेश देते हैं कि उन्हें पानी, उर्वरकों और खाद की जरूरत है। जब एक पौधा बीज से निकलता है तो वह पानी, सूर्य के प्रकाश, खाद और उर्वरकों की आवश्यकता का संप्रेषण करना शुरू कर देता है, इस प्रकार संप्रेषण के हेलिकल मॉडल का समर्थन करता है। जानवरों, पक्षियों, मछलियों और सभी जीवित प्राणियों पर यही लागू होता है।




8. संप्रेषण का थिल एवं बोवी मॉडल (Thill and Bowie models of communication)


जॉन तिल एवं कोर्टलैंड एल. बोवी के अनुसार व्यावसायिक संप्रेषण घटनाओं की एक कड़ी है जिसकी पाँच अवस्थाएं हैं जो प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता को जोड़ती हैं। इस मॉडल के अनुसार संप्रेषक के पास एक विचार होता है, प्रेषक इस विचार को संदेश के रूप में परिवर्तित करके उचित माध्यम से प्रेषित करके संदेश को प्राप्तकर्त्ता तक पहुँचा कर उसकी (अर्थात्‌ प्राप्तकर्त्ता की) प्रतिक्रिया लेता है। संप्रेषण की प्रक्रिया इसी रूप में घटित होती है।










थिल एवं बोवी मॉडल में समाहित घटक निम्न हैं:

विचार, विचार का संदेश के रूप में परिवर्तन, संदेश का संप्रेषण, प्राप्तकर्त्ता द्वारा संदेश प्राप्ति एवं प्राप्तकर्त्ता द्वारा प्रतिपुष्टि।


9. लेसिकर, पेटाइट एवं फ्लैटले मॉडल (Lesikar, Pettit and Flatley model)


इस मॉडल को संवेदनशीलता मॉडल के रूप में प्रतिपादित किया गया। इसमें संप्रेषण प्रक्रिया संदेश प्रेषण से प्रारम्भ होकर क्रम की पुनःआवत्ति (The Cycle Repeated) पर समाप्त होता है। इन विद्वानों ने स्पष्ट किया कि संप्रेषण प्रक्रिया में संवेदन तंत्र का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है क्योंकि संदेश प्राप्तकर्त्ता द्वारा संदेश संवेदन तंत्र द्वारा प्राप्त किया जाता है। संवेदन तंत्र संवाद को खोजकर संवाद के साथ-साथ पहले से उपलब्ध कुछ अन्य सूचनाएँ भी एकत्रित करता है। इसमें संवाद को संदेश माध्यम में उपलब्ध शोर से अलग रखा जाता है ताकि संदेश में अशुद्धता न हो। यहाँ संवाद को दिया गया अर्थ संवेदन तंत्र से कुछ प्रतिक्रिया भी प्राप्त कर सकता है जो संदेश प्रेषक को मौखिक अथवा अमौखिक रूप में भेजी जा सकती है।









इस प्रक्रिया में निम्न संघटक शामिल रहते हैं:


*संदेश प्रेषण


*संवेदन तंत्र द्वारा संवाद की खोज


*निस्पंदन प्रक्रिया


*प्रतिक्रिया की रचना एवं प्रेषण


*क्रम की पुनः आवत्ति




लेसिकर, पेटाइट एवं फ्लैटले मॉडल


इस मॉडल के अनुसार संप्रेषण एक गतिशील प्रक्रिया है जिसमें किसी विशेष उद्देश्य या लक्ष्य प्राप्ति से सम्बन्धित क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं की एक श्रृंखला समाहित होती है। अतः संप्रेषण एक द्विमार्गी प्रक्रिया है जहाँ संप्रेषक की संप्रेषण क्षमता व प्राप्तकर्त्ता की ग्राह्य क्षमता दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। सफल संप्रेषण प्रक्रिया के लिये प्रतिपुष्टि (फीडबैक) की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि इसके बिना संप्रेषण प्रक्रिया अधूरी रहती है।






बुधवार, 25 मई 2022

अभाषिक संप्रेषण









संप्रेक्षण के (सम् +प्रेषण) के मूल में 'प्रेक्षण है, जिसका अर्थ होता है- जाना या पहुंँचना ।इस दृष्टि में संप्रेषण का अर्थ हुआ -सम्यक् रूप (ठीक )से जाना या अच्छी तरह पहुंँचना ।


संप्रेषण प्रक्रिया के मुख्य दो रूप होते हैं:-

1) भाषिक संप्रेषण:-  भाषा का भलीभांँति पहुंँचना ही भाषिक संप्रेषण है ।भाषा के भीतर भाव या विचार होते हैं। जब किसी व्यक्ति (वक्ता )के विचार दूसरे व्यक्ति (श्रोता) तक सम्यक् रूप से पहुंँच जाते हैं तब यह स्थिति भाषिक संप्रेक्षण की होती है ।


परिभाषा :-दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच परस्पर विचारों के आदान प्रदान की प्रक्रिया को भाषिक संप्रेषण कहते हैं ;जैसे -मोहन ने सोहन से कहा -"तुम क्या पढ़ रहे हो?" सोहन -"मैं तो कहानी पढ़ रहा हूंँ।"


 मोहन -"कौन सी?"

 सोहन -"पंच परमेश्वर"।... इस प्रक्रिया इस प्रकार वक्ता और श्रोता के बीच परस्पर विचारों का संप्रेषण ही भाषिक संप्रेक्षण कहलाता है ।








संप्रेक्षण एक बहुत बड़ी अवधारणा है जिसमें कोई चिट्ठी, खबर ,पानी ,प्रकाश ,हवाएं इत्यादि बहुत-सी वस्तुओं का संप्रेषण (एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रसार या गमन )हो सकता है ,किंतु जो संप्रेषण भाषा पर आधारित अथवा भाषा के माध्यम से होता है। उसे भाषिक संप्रेषण कहते हैं। भाषिक संप्रेक्षण भाषा सापेक्ष्य होता है ।उसमें भाषा के रूप भले ही भिन्न-आंगिक ,मौखिक ,लिखित यांत्रिक हो सकता है,परंतु होता अवश्य है।भाषा के अभाव में भाषिक संप्रेषण की प्रक्रिया असंभव है।









 2) अभाषिक संप्रेषण :- से तात्पर्य सामान्यतः भाषा रहित संदेशों को संप्रेषित करने और उसे प्राप्त करने की प्रक्रिया से है। हम जानते हैं कि केवल भाषा ही सम्प्रेषण का माध्यम नहीं है, इसके अलावा भी कई अन्य माध्यम हैं जिनके माध्यम से सम्प्रेषण होता है। मनुष्य के अलावा जितने भी प्राणी हैं वे भाषा से अलग दूसरे माध्यमों से सम्प्रेषण करते हैं और दूसरे तक अपनी भावनाएं और संदेश संप्रेषित करते हैं। मनुष्य एकलौता प्राणी है जो भाषा के साथ-साथ अन्य भाषेतर माध्यमों से भी सम्प्रेषण करता है। इस प्रकार के संप्रेषण के लिए ‘अवाचिक संप्रेषण’, ‘वाचेतर संपेष्रण’; ‘अशाब्दिक सम्प्रेषण’ आदि शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है।


• अभाषिक सम्प्रेषण का अध्ययन करते समय “भाषिक” शब्द के अलग अर्थ का प्रयोग किया जाता है। अभाषिक सम्प्रेषण में “अभाषिक” शब्द का अर्थ मुख से बोले गए सभी शब्दों से नहीं होता। मौखिक ध्वनियाँ जो कि शब्द नहीं मानी जातीं, जैसे कि घुरघुराना या शब्द रहित गीत गाना या गुनगुनाना आदि अभाषिक हैं। संकेत भाषा तथा को सामान्यतः अभाषिक संप्रेषण का रूप माना जाता है। जब हम बोलते या सुनते हैं तो हमारा ध्यान शारीरिक भाषा के साथ-साथ भाषा पर भी होता है। हमारे बारे में कोई भी निर्णय उक्त दोनों अर्थात शारीरिक भाषा और मौखिक भाषा को आधार बनाकर लिया जाता है। प्रापक भाषिक और अभाषिक दोनों संकेतों पर एक साथ ध्यान देता है।  






• अभाषिक संप्रेषण को शारीरिक हाव-भाव, स्पर्श, शारीरिक भाषा ( Body Language), चेहरे की भाव भंगिमा, चेहरे की अभिव्यक्ति या आँखों के उपयोग से भी संप्रेषित किया जाता है। अभाषिक सम्प्रेषण को वस्तु सामग्री संप्रेषण यथा -वस्त्र, बालों की स्टाइल या स्थापत्य, प्रतीकों व चित्रों के माध्यम से भी संप्रेषित किया जा सकता है। आवाज या वाणी में अशाब्दिक तत्व सम्मिलित होते हैं जिनमें आवाज की गुणवत्ता, भावना, बोलने के तरीके के साथ-साथ ताल, लय, आलाप एवं तनाव आदि भी सम्मिलित हैं। नृत्य को भी अभाषिक संप्रेषण के अंतर्गत गिना जाता है क्योंकि नृत्य के माध्यम से भी हम संदेशों को संप्रेषित करते हैं। भारतीय नृत्य की कई शैलियाँ प्रचलित हैं जिनसे मनुष्य सम्प्रेषण की प्रक्रिया पूरी करता है। किसी भी भाषा के लिखित पाठ में भी अभाषिक तत्व मौजूद होते हैं। जैसे – हस्तलेखन का तरीका जिसमें कौमा, पूर्ण विराम, दो शब्दों के बीच की खाली जगह आदि। इनसे भी अर्थ अर्थात संदेश संप्रेषित होते हैं। शब्दों की स्थान संबंधी व्यवस्था से भी संदेश संप्रेषित होते हैं। वाक्यों में इमोटिकोन या इमोजी (emoticons) का प्रयोग करके भी संदेश संप्रेषित किए जाते हैं। वर्तमान समय में व्हाट्सअप्प, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया की भाषा में इमोजी जैसे अभाषिक तत्वों का खूब प्रयोग किया जा रहा है। अभाषिक सम्प्रेषण का प्रयोग भाषिक सम्प्रेषण को और अधिक आकर्षित और प्रभावशाली बनाता है। अभाषिक संप्रेषण का अधिकांशतः उपयोग उस समय किया जाता है जब प्रेषक और प्रापक आमने-सामने होते हैं अर्थात प्रेषक और प्रापक एक दूसरे को देख रहे हों। प्रेषक और प्रापक की बातचीत को अभाषिक सम्प्रेषण के तत्वों के द्वारा और भी अधिक प्रभावशाली बनाया जाता है।


 NOTE:- अभाषिक संप्रेषण का प्रथम वैज्ञानिक अध्ययन चार्ल्स डार्विन ने किया था। डार्विन ने 1872 में एक पुस्तक लिखी थी जिसका शीर्षक है- द एक्सप्रेसन ऑफ द इमोशन इन मैन एंड एनिमल । इस पुस्तक में उन्होंने तर्क दिया कि सभी स्तनपायी अपने चेहरे पर दर्शाते हैं। इस पुस्तक में डार्विन ने स्तनधारी जानवरों द्वारा किए जाने वाले अभाषिक सम्प्रेषण के बारे में बताया है। बाद में चलकर कई अन्य विद्वानों ने डार्विन की बातों को आगे बढ़ाया। वर्तमान में भाषा विज्ञान, संकेत विज्ञान एवं सामाजिक मनोविज्ञान सहित कई क्षेत्रों में अभाषिक सम्प्रेषण से संबन्धित अध्ययन हो रहे हैं।


• अधिकतर अभाषिक सम्प्रेषण अनियंत्रित संकेतों पर आधारित होते हैं अर्थात उनका एक ही अर्थ निकालना मुश्किल होता है। कई बार केवल संकेतों के माध्यम से या चेहरे के हाव-भाव या आँखों की पुतलियों को ऊपर-नीचे कर एक प्रेषक अपने संदेश को पूरी तरह प्रापक तक नहीं पहुंचा पाता है। अभाषिक सम्प्रेषण के माध्यम से संप्रेषित अर्थ अलग-अलग समाजों और संस्कृतियों के अनुसार अलग-अलग होते हैं। इसके विपरीत अभाषिक सम्प्रेषण के तत्वों का बड़ा हिस्सा कुछ हद तक मूर्ति सदृश (आइकॉनिक) भी हो गया है अर्थात् अधिकांश समाजों एवं संस्कृतियों के लोग उन्हें आसानी से समझ सकते हैं। अर्थात कुछ संकेत या शारीरिक हाव-भाव ऐसे होते हैं जिनका अर्थ पूरी दुनिया में एक ही होता है। ऐसे शारीरिक हाव-भाव या चेहरे, आँखों या हाथों के कार्य व्यापार पर प्रसिद्ध विद्वान पॉल एकमैन ने बहुत ही महत्वपूर्ण अध्ययन किया है। चेहरे की अभिव्यक्ति के संबंध में पॉल एकमैन का 1960 के दशक का यह महत्वपूर्ण अध्ययन हमें यह बताता है कि गुस्सा, घृणा, भय, प्रसन्नता, उदासी एवं आश्चर्य की अभिव्यक्ति सार्वभौमिक होती है अर्थात् पूरी दुनिया के लोग इन भावनाओं की अभाषिक अभिव्यक्ति एक ही तरह से करते हैं। जब दो अलग-अलग भाषाओं के व्यक्ति एक दूसरे से मिलते हैं तो वे उक्त भावनाओं को बिना किसी भाषा के उपयोग के समझ जाते हैं। जब दो अलग-अलग भाषा के व्यक्ति मिलते हैं तो इसी कारण वे सबसे पहले सम्प्रेषण की प्रक्रिया की शुरुआत अभाषिक सम्प्रेषण के माध्यम से करते हैं।

• वस्त्र और शारीरिक लक्षण अभाषिक सम्प्रेषण के महत्वपूर्ण तत्व हैं। बातचीत के दौरान शारीरिक बनावट, लंबाई, वजन, बाल, त्वचा का रंग, लिंग, गंध एवं वस्त्र अशाब्दिक संदेश भेजते हैं। व्यक्ति की लंबाई के संबंध में किये गये कई अध्ययनों में सामान्यतः यह पाया गया है कि लंबे व्यक्ति ज्यादा प्रभावशाली माने गये हैं। मेलामेड एण्ड बोज़ियोनीलोस (1992) द्वारा यूनाइटेड किंगडम में किये गये प्रबंधकों के नमूनों के एक अध्ययन में यह पाया गया कि पदोन्नति में कद एक महत्त्वपूर्ण कारक सिद्ध हुआ है। प्रायः वहां यह पाया गया कि एक समान प्रतिभा होने के बावजूद लम्बे कद के व्यक्तियों ने पदोन्नति के मामले में सफलता प्राप्त की। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में पदोन्नति प्राप्त करना चाहता है और वह भाषिक सम्प्रेषण के माध्यम से दूसरों को प्रभावित करने का प्रयास करता है लेकिन हमने देखा कि शारीरिक लंबाई जैसे अभाषिक सम्प्रेषण से भी लोग प्रभावित हुए और इसी कारण कुछ लोगों को पदोन्नति मिली।








•फर्नीचर, स्थापत्य कला, आंतरिक साज-सज्जा, प्रकाश की व्यवस्था, रंग, तापमान, शोरगुल एवं संगीत जैसे वातावरणीय कारक अभाषिक सम्प्रेषण को प्रभावित करते हैं। यदि संदेश के अनुसार वातावरण होता है तो प्रेषक अधिक सहजता से प्रापक को प्रभावित करता है। अभाषिक सम्प्रेषण में प्रॉक्सीमिक्स का विशेष महत्व होता है। प्रॉक्सीमिक्स वह अध्ययन है जिसमें यह पता लगाया जाता है कि प्रेषक अपने आसपास मौजूद वातावरण का किस तरह से सम्प्रेषण की प्रक्रिया में प्रयोग करता है। किसी संदेश के प्रेषक एवं प्रापक के बीच की जगह संदेश प्राप्ति को प्रभावित करता है। अलग-अलग समाज में जगह को ग्रहण एवं उसे प्रयोग करने का तरीका अलग-अलग होता है।

क्रोनेमिक्स, अभाषिक संप्रेषण में समय के प्रयोग का अध्ययन है। अभाषिक सम्प्रेषण में समय का बहुत महत्व होता है। समय के अंतर्गत समय पर सम्प्रेषण प्रक्रिया की शुरुआत, प्रेषक का इंतजार हेतु प्रापक में इच्छा, वाणी की गति एवं कब तक प्रापक सुनना चाहते हैं, सम्मिलित होता है। यदि प्रेषक समय के इन सभी पहलुओं का ध्यान रखता है तो वह प्रापक को अधिक प्रभावित करता है।    

काइनेसिक्स शब्द का सबसे पहले प्रयोग मानव विकास विज्ञानी रे बर्ड विहिस्टैल द्वारा सन 1952 में किया गया था। विहिस्टैल यह जानना चाहते थे कि व्यक्ति किस तरह मुद्राओं, भाव भंगिमाओं, तरीकों एवं संचालन के द्वारा संप्रेषण करते हैं। शारीरिक मुद्रायें इन सूचकों द्वारा समझी जाती हैं – झुकाव की दिशा, शरीर उन्मुखीकरण, बाहों की स्थिति एवं शरीर का खुलापन। हावभाव से तात्पर्य गैर मौखिक शारीरिक संचालन से है जो कि अर्थ को अभिव्यक्त करता है। ये हाथ, भुजाओं या शरीर से जुड़े हो सकते हैं, एवं इनमें सिर, चेहरा तथा आँखों के संचालन भी शामिल होते हैं जैसे कि आँख मिचकाना, झपकाना एवं गोल करना। प्रेषक द्वारा सम्प्रेषण की प्रक्रिया के द्वारा शारीरिक मुद्राओं के उपयोग से प्रापक प्रभावित होते हैं। हावभाव हमारी बातचीत के दौरान सहसा प्रयोग होते हैं। ये हावभाव, वाणी के साथ नजदीकी समन्वय रखते हैं।  

 

अभाषिक संप्रेषण की स्पष्टता के लिए हिंदी के मशहूर कवि बिहारी और रहीम के दोहे उपयुक्त हैं:-


रहिम- "खैर, खून, खांसी खुशी, बैर प्रीति, मतपान,। रहिमन दाबे न दबे जानत सकल जहान।।


बिहारी- 'कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत मिलत लजियात। भरे भौन में करत है, नयनन ही सां बात।।


उपयुक्त उदाहरण में अभाषिक संप्रेषण की दृष्टि से शारीरिक भाव भंगिमाओं, मुखमंडल की विभिन्न अभिव्यक्ति सहित नेत्रों का संदेश संप्रेषण आदि मानव संप्रेषण की पराभाषायी रूप सम्मिलित है। एक अनुमान के अनुसार संप्रेषण में 50% संप्रेष्य संदेश केवल चेहरे के हाव भाव और शरीर के विविध अगों के संचालन द्वारा किया जाता है ऐसे ही मौखिक संबंध में भी प्रतिक्रिया अंग संचालन के माध्यम से व्यक्त होती है।

अभाषिक संप्रेक्षण का इतिहास

अभाषिक संप्रेषण का ऐतिहासिक साक्ष्य और विकासक्रम हमें आदिमानव की गुफाओं में प्रस्तर वस्तुओं और भित्ति चित्रों से लेकर नृत्य, नृत्य नाटिका, मूक प्रदर्शन जैसे अभिव्यंजनात्मक और अमूर्त कला के रूप में दिखाई देता है। आधुनिकतम कला रूपों में अभाषिक संप्रेषण की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारतीय नृत्य की कई शैलियाँ प्रचलित हैं जिसमें अभाषिक संप्रेषण द्वारा संदेशों को संप्रेषित किया जाता है। कथक, भरत नाट्यम, कथकली, नौटंकी, ओडिसी, मणिपुरी, कुचिपुड़ि आदि नृत्य शैलियाँ में बिना शब्दों के प्रयोग के भी सशक्त रूप से भावाभिव्यक्ति करते हैं। अभाषिक संप्रेषण-प्रक्रिया प्राचीन काल से ही मानव समाज में विद्यमान है और आज भी किसी न किसी रूप में प्रयुक्त हो रही है। मनुष्य के अलावा जितने भी प्राणी हैं वे दूसरे तक अपनी भावनाएं और संदेश संप्रेषित करने के लिए केवल अभाषिक संप्रेषण का प्रयोग करते हैं। वहीं मनुष्य ही एकमात्र प्राणी है जो भाषिक संप्रेषण के साथ-साथ अभाषिक संप्रेषण भी करता है।


अभाषिक संप्रेषण की विशेषताएँ -


*अभाषिक संप्रेषण में संप्रेषक / प्रापक की कोई मुद्रा या फिर कोई क्रिया हो सकती है। साथ ही ये मुद्रा या क्रिया शारीरिक भंगिमाओं की भाँति अत्यधिक जटिल या नेत्र के इशारे/कटाक्ष जैसी हो सकती है।

*अभाषिक संप्रेषण में व्यक्त संदेश मौखिक संदेश से भिन्न हो सकता है।

* इस संप्रेषण की व्याख्या किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति या सामाजिक अनुभव के रूप में की जा सकती है।

*अभाषिक संप्रेषण का प्रभावी प्रयोग सभी लोग आसानी से नहीं कर सकते।

*अभाषिक संप्रेक्षण का अधिकांशत प्रयोग उस समय किया जाता है जब प्रेषक और प्रापक आमने सामने होते हैं। 


अभाषिक संप्रेषण का महत्व


1: यह मौखिक संचार में मूल्य जोड़ता है

2: शब्दों में कही गई बातों को सुदृढ़ या संशोधित करता है। 

3: संस्कृत बाधाओं को दूर करने में मदद करता है। 

4: गैर साक्षर या सुनने की आक्षमता वाले लोगों के साथ संवाद करने में सहायता करता है। 

5: अलग-अलग भाषाओं के व्यक्ति संप्रेषण की प्रक्रिया की शुरुआत इसी से करते हैं। 

6: कार्यस्थल की दक्षता को बढ़ाता है। 

7: विश्वसनीयता को मजबूत करता है। 

8: भाषिक संप्रेषण को और अधिक आकर्षक और प्रभावशाली बनाता है। 


''अतः हमारे देनिक जीवन में होने वाले संप्रेक्षण में अभाषिक संप्रेषण का महत्व है। "



*अभाषिक संप्रेषण प्रक्रिया में संदेश को मोटे तौर पर तीन रूप में अभिव्यक्त किया जाता हैं:-. 

 1) संकेत द्वारा 

 2) क्रिया द्वारा

3) वस्तु द्वारा 

 अभाषिक या अशाब्दिक संप्रेषण का आधार जैविक अथवा सामाजिक या दोनों हो सकता है।



अभाषिक संप्रेषण के प्रकार 







हमारे संप्रेषण का एक बड़ा हिस्सा अभाषिक होता है। विभिन्न विद्वानों का मत है कि हम प्रत्येक दिन हजारों अभाषिक संकेतों का प्रयोग करते हैं, जिनमें चेहरे के भाव, हावभाव, स्वर की आवाज़, शरीर की भाषा, प्रॉक्सीमिक्स या व्यक्तिगत स्थान, आंखों की टकटकी, हैप्टिक्स (स्पर्श), उपस्थिति, और कलाकृतियां जैसे पैरालिंग्विस्टिक्स शामिल हैं। अभाषिक संप्रेषण मुख्यत: 10 प्रकार के होते हैं-


1. चेहरे के भाव (Facial Expressions)




  चेहरे के भाव   अभाषिक संप्रेषण   का एक प्रभावी     साधन है। जिसमें     भय, क्रोध, ख़ुशी, उदासी आदि शामिल है। चेहरे के ये भाव मजबूत भावनाओं को दर्शाते हैं और पूरे विश्व में समान हैं। उदाहरण के लिए, एक मुस्कान किसी भी स्थिति को संभालना आसान बना देती है।


2. इशारे (Gestures)






भाषिक संप्रेषण का यह सबसे आसान तत्व है। शब्दों के बिना अर्थ को संप्रेषित करने का यह महत्वपूर्ण तरीका हैं। नियमित बातचीत के दौरान हममें से अधिकांश जाने-अनजाने कुछ इशारों का उपयोग करते हैं; जैसे- हाथ या सिर को हिलाना, उंगलियाँ आदि द्वारा हम इशारे करना। एक इशारे का भिन्न स्थितियों में अलग-अलग मतलब हो सकता है। कई इशारों का विभिन्न संस्कृतियों में अलग-अलग अर्थ होता है।


3. पैरा-भाषा विज्ञान (Paralinguistics)


पैरा-भाषा विज्ञान में भाषण के अलावा आवाज के जो पहलू हैं, वे आते हैं; जैसे- पिच, स्वर, मात्रा और गति आदि। अर्थात Paralinguistics मुखर संप्रेषण को संदर्भित करता है जो वास्तविक भाषा से अलग है।


उदाहरण- क्या आपको सप्ताहांत पर आयोजित होने वाले सामुदायिक क्रिकेट मैच याद है? जिस तरह से तुम्हारा भाई चिल्लाते हुए आया, तुम्हें पता चल गया कि वह मैच जीत लिया है।


4. शारीरिक भाव और मुद्रा (Body Language and Posture)



शारीरिक हाव-भाव और मुद्रा भी अभाषिक संप्रेषण का एक प्रभावी साधन है। आप किसी व्यक्ति के Body Language, Posture, हावभाव, खड़े होने और बैठने आदि से उसके बारे में बहुत कुछ बता सकते हैं। प्रेषक संप्रेषण की प्रक्रिया के द्वारा शारीरिक मुद्राओं के उपयोग से प्रापक को प्रभावित करता है। उदाहरण के रूप में अभिनेता अमिताभ बच्चन को लिया जा सकता है, जिन्होंने अपनी शुरुआती फिल्मों में प्रभावशाली बॉडी लैंग्वेज से एंग्री यंग मैन का व्यक्तित्व उभर कर सामने आया।


5. निकटता या व्यक्तिगत स्थान (Proxemics)


निकटता या व्यक्तिगत स्थानअंतरंगता के स्तर को निर्धारित करता है। किसी के साथ कितने नजदीक या दूरी से बातचीत करते हैं, को यह दर्शाता है। यह सामाजिक सहित कई कारकों से प्रभावित होता है। मानदंड, सांस्कृतिक अपेक्षाएँ, स्थितिजन्य कारक, व्यक्तित्व और परिचित का स्तर से प्रभावित होता है। यह भी दर्शाता है की प्रेषक अपने आसपास मौजूद वातावरण का किस तरह से संप्रेषण की प्रक्रिया में प्रयोग करता है।


6. आँख से संपर्क: (Eye Contact)


आंखें अभाषिक संप्रेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। देखना, घूरना और झपकना महत्वपूर्ण अभाषिक संप्रेषण हैं। यह भरोसे और विश्वसनीयता के स्तर को निर्धारित करती है। अभिनेता इरफान खान अपनी आंखों से ही बहुत कुछ संप्रेषित कर देते थे। हॉलीवुड स्टार टॉम हैंक्स ने भी कहा है, ‘मैं इरफ़ान की जादुई आँखों से मोहित हो गया हूँ।’


जो लोग आंखों के संपर्क से बचते हैं, उन्हें अक्सर शर्मीला या कम आत्मविश्वास वाला माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति आंख मिलकर बात करता है तो उससे एक संकेत मिल जाता है कि वह ईमानदार है। स्थिर आंखों के संपर्क करने वाले अक्सर सच बोलते हैं और भरोसेमंद होते हैं। वहीं झुकी हुई आँखें या आँख से संपर्क बनाए रखने में असमर्थता यह दिखाता है कि व्यक्ति झूठ बोल रहा है या धोखा दे रहा है।


7. शारीरिक परिवर्तन (Physical Changes)


हमारा शारीरिक परिवर्तन भी अभाषिक संप्रेषण के दायरे में आता है।, उदाहरण के लिए, जब हम नर्वस होते हैं तो हमें पसीना या झपकी आ जाती है और कभी-कभी हृदय गति भी बढ़ जाती है। स्वयं को नियंत्रित करना लगभग असंभव हो जाता है। इसलिए Physical Changes मानसिक स्थिति का एक बहुत ही महत्वपूर्ण संकेतक है।


8. हैप्टिक्स (Haptics)


हैपटिक संप्रेषण वह माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य एवं अन्य जीव स्पर्श के द्वारा संप्रेषण करते हैं। मनुष्यों के लिये स्पर्श एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण इंद्रिय ज्ञान है। यह एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के साथ के संबंध को भी निर्धारित करता है और शारीरिक नजदीकी को भी सूचित करता है। चुम्बन, गले लगाना, हाथ मिलाना आदि स्पर्श के उदाहरण हैं।

स्पर्श का उपयोग स्नेह, परिचित, सहानुभूति और अन्य भावनाओं को संप्रेषित करने के लिए किया जाता है। शैशवावस्था या बचपन में स्पर्श का व्यापक प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। नवजात शिशु स्पर्श समझ लेते हैं, भले ही वे देख व सुन न पायें।

‘इंटरपर्सनल कम्युनिकेशन: एवरीडे एनकाउंटर्स’ की लेखक जूलिया वुड के अनुसार, ‘स्पर्श का उपयोग अक्सर स्थिति और शक्ति दोनों को संप्रेषित करने के तरीके के रूप में भी किया जाता है।’ महिलाएं देखभाल, चिंता और पोषण को व्यक्त करने के लिए स्पर्श का उपयोग करती हैं। वहीं दूसरी ओर, पुरुष अधिकतर शक्ति या दूसरों पर नियंत्रण करने के लिए स्पर्श का उपयोग करता है।


स्पर्श को भिन्न-भिन्न देशों में अलग-अलग नजरिये से देखा जाता है। हर संस्कृति में सामाजिक रूप से स्वीकृत स्पर्श की अलग सीमा है। थाई संस्कृति में, किसी का सिर स्पर्श करना अभद्र माना जा सकता है। शारीरिक रूप से कष्ट पहुँचाने के संदर्भ में धक्का देना, ठोकर मारना, पैर से मारना, खींचना, चुभाना, गला दबाना आदि स्पर्श के ही रूप हैं।


9. दिखावट (Appearance)


रंग, कपड़े, केशविन्यास आदि को भी अभाषिक संप्रेषण का एक साधन माना जाता है। Appearance की उपस्थिति हमारी शारीरिक प्रतिक्रियाओं, निर्णयों और व्याख्याओं को बदल देती है। विभिन्न रंग, पहनावा और केशविन्यास अलग-अलग मूड़ पैदा करते हैं। उदाहरण के रूप में जब हम किसी साक्षात्कार में शामिल होते हैं तो उचित रूप से तैयार होकर जाते हैं, ड्रेस सेंस और उसके रंग का विशेष ध्यान देते हैं। क्योंकि यह दिखावट भी हमारे बारे में बहुत कुछ संप्रेषित करता है। इसे सिपाही की वर्दी और डॉक्टर की सफेद लैब कोट से भी समझा जा सकता है।


10. कलाकृतियों (Artifacts)


वस्तुएं और छवियाँ ऐसे उपकरण हैं जिनका उपयोग अभाषिक संप्रेषण के रूप में किया जाता है। उदाहरण के लिए, किसी ऑनलाइन माध्यम पर हम अपनी पहचान का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी छवि का चयन कर सकते हैं। इससे हमारी पहचान और पसंद की जानकारी सभी दर्शकों को बिना बोले ही हो जाएगा। यदि किसी वक्ता की मेज पर गाँधी की तस्वीर है तो उससे एक संदेश संप्रेषित होता है की यह वक्ता गांधीवादी है, उनको पसंद करता है। इसकी दृष्टि जरूर गांधीजी से प्रभावित होगी।


फर्नीचर, स्थापत्य कला, आंतरिक साज-सज्जा, प्रकाश की व्यवस्था, रंग, तापमान, शोरगुल एवं संगीत जैसे वातावरणीय कारक अभाषिक संप्रेषण को प्रभावित करते हैं।

उपर्युक्त कोडों के अतिरिक्त कुछ अन्य अमौखिक उद्दीपक हैं- पहनावा , शरीर का रंग , चेहरा , होंठ , उंगलियाँ , चालगति , शारीरिक काया , भौंह , सुगंध् , आँखों का रंग , बालों की संरचना ,आवाज, बोलना।











अभाषिक संप्रेषण की सीमाएं

कई बार केवल संकेतों के माध्यम से, चेहरे के हाव-भाव या आँखों की पुतलियों आदि द्वारा प्रेषक अपने संदेश को पूरी तरह प्रापक तक नहीं पहुंचा पाता है। अधिकतर अभाषिक संप्रेषण अनियंत्रित संकेतों पर आधारित होते हैं अर्थात उनका एक ही अर्थ निकालना मुश्किल होता है। अलग-अलग समाजों एवं संस्कृतियों में कुछ संकेत भिन्न-भिन्न अर्थ रखते हैं। इसके विपरीत अभाषिक संप्रेषण के तत्वों का बड़ा हिस्सा कुछ हद तक मूर्ति सदृश (आइकॉनिक) भी हो गया है। अर्थात कुछ संकेत या शारीरिक हाव-भाव ऐसे होते हैं जिनका अर्थ पूरी दुनिया में एक ही होता है। पॉल एकमैन के अनुसार गुस्सा, घृणा, भय, प्रसन्नता, उदासी एवं आश्चर्य की अभिव्यक्ति सार्वभौमिक होती है अर्थात पूरी दुनिया के लोग इन भावनाओं की अभाषिक अभिव्यक्ति एक ही तरह से करते हैं।


संदर्भ

•इस तरह कहा जा सकता है कि सभी प्राणियों में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो भाषिक और अभाषिक माध्यमों से  संप्रेषण करता है।  संप्रेषण की प्रक्रिया में अभाषिक  संप्रेषण  का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। अभाषिक संप्रेषण के माध्यम से भाषिक संप्रेषण को अधिक प्रभावशाली बनाया जाता है।





रविवार, 22 मई 2022

फोन से लिपटी सुनीता की जिंदगी





 जैसा कि हमेशा होता है आज भी सुनीता की सुबह की शुरुआत फोन के साथ हुई.... पता नहीं क्यों ? मानो कि जैसे इस फोन ने उसे जकड़ रखा हो....,हां पता है उसे कि हद से ज्यादा कोई चीज हानिकारक होती है पर उसके मन का क्या..मानता ही नहीं है ,ना चाहते हुए भी फोन सुबह उसके हाथ में आ ही जाता है वैसे भी अब तो कुछ दिनों तक उसकी कक्षाएं(classes) भी ऑनलाइन होने वाली थी । लो एक और बहाना मिल गया  उसे सुबह फोन हाथ में लेने का.... अचानक उसे याद आया कि आज तो फोन का रिचार्ज भी खत्म हो गया है पर क्लासिज़ लेनी थी तो रिचार्ज भी हो गया। लेकिन आज उसका चेहरा  जरा उतरा-उतरा सा नजर आ रहा था क्योंकि आज जो उसकी लगातार (8:00 से लेकर 1:00 बजे तक) चार क्लासिज़ जो थी। जिसमें पहली तीन तो जैसे की आप सभी को पता लग ही गया होगा... सोते हुए या सोशल मीडिया जैसे- इंस्टा चलाते हुए खत्म हो गई पर अचानक उसे याद आया कि अभी तो एक और क्लास बची हुई है- थ्योरी की।वह बोली हाय... निहाईती घटिया क्लास ।लेकिन वह भला कुछ थोड़ी कर सकती थी....लेनी पड़ी। उसने कहा - "आज तो वैसे भी असाइनमेंट की प्रेजेंटेशन चल रही है और मैम सभी बच्चों से एक -एक करके एक प्रश्न पूछ रही है,मजबूरी में ही सही... पर सभी बच्चे उसका जवाब दे रहे हैं यह उनके चेहरे से तो दिख ही रहा है " लेकिन वह कहती है कि माक्स देने के मामले में मैम का मिजाज जरा समझ नहीं आ रहा था। मानो जैसे कि अपना मूड तो खराब है ही दूसरों का भी खराब करके ही जाएंगी,अब तो वह(सुनीता)तर्क-वितर्क करने लगी और कहने लगी कि एक प्रश्न पूछ कर कोई इंसान यह कैसे अंदाजा लगा सकता है कि उसके पीछे किसी बच्चे ने कितनी मेहनत की हो। यही उसके साथ भी हुआ फिर क्या वह तो अब गुस्से से लाल हो गई...लेकिन करती भी भला क्या....लेना-देना कहा था उससे किसी को, परिवार के सभी सदस्य तो अपनी रोजमर्रा के कार्यों में मशरूफ थे फिर क्या ?वह बिचारी थकी-हारी बिस्तर पर बैठ गई और सोचने लगी की अपने जीवन को कैसे सुधार सकती है कि तभी... अचानक उसके फोन की घंटी बजने लगी देखा तो उसकी प्रिय सहेली प्रेरणा का फोन था। प्रेरणा ने उससे क्लासिज़ की बातें करते हुए बहोत मोटिवेट किया। अपनी सहेली की बाते सुनकर मानो की उसमें एक आग सी लग गई हो ,उसके बाद तो वह जोश-जोश में पढ़ती ही जा रही थी मानो जैसे कि आज तो पूरी किताब ही खत्म कर देगी "लेकिन भला अच्छा समय ज्यादा देर तक कहां टिकता है। "कि तभी अचानक उसके फोन में एक नोटिफिकेशन आया -उसके पसंदीदा ड्रामा के अगले एपिसोड का जिसका वह कई दिनों से इंतजार कर रही थी फिर क्या अब तो कोई दीवार भी उसे रोक नहीं सकती थी। वही बिस्तर पर वह और हाथ में उसका फोन।

                                                  By Sushma

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संप्रेषण के प्रमुख मॉडल

संप्रेषण पर अधिकतर पश्चिमी विचारकों ने ही अपना मत रखा है, भारतीय चिंतन परम्परा में इसका अभाव दिखाई देता है। पश्चिमी विद्वानों के प्रमुख संप्...